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शिक्षा क्या है ? जानिए क्यों है शिक्षा के इतने महत्व।

मानव प्राकृतिक के सर्वोच्चतम रचना है, जो अपने साथ कुछ जन्मजात शक्तियां लेकर पैदा होता है। शिक्षा के द्वारा मानव के इन जन्मजात शक्तियों का विकास उसके ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन का मुख्य कारण होता है। और उसे सुसंस्कृति एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। यह कार्य मानव के जन्म से ही उसके परिवार द्वारा अनौपचारिक रूप से तत्पश्चात विद्यालय भेज कर औपचारिक रूप से प्रारंभ कर दिया जाता है। विद्यालय के साथ-साथ उसे परिवार एवं समुदाय में भी कुछ ना कुछ सिखाया जाता रहा है और सीखने सिखाने का यह क्रम विद्यालय छोड़ने के बाद भी चलता रहता है और जीवन भर चलता रहता है ! अपने वास्तविक अर्थ में किसी समाज में सदैव चलने वाली सीखने सिखाने की यह सप्रयोजन प्रक्रिया ही शिक्षा है।

शिक्षा क्या है ? What Is Education ?

शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव अपने विकास को निरंतर गतिशील रखता है, शिक्षा है।

शिक्षा ज्ञान कौशल और मूल्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है।

भारतीय दृष्टिकोण में शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के “शिक्ष” से निकला है, जिसका अर्थ है सीखना और सीखना। इसी प्रकार यदि हम शिक्षा के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द एजुकेशन पर विचार करें तो उसका भी यही अर्थ निकलता है एजुकेशन शब्द लैटिन भाषा के एजुकेटम शब्द से बना है और एजुकेटम शब्द के उसी भाषा के “ए” का अर्थ अंदर से और “डयूको” का अर्थ है आगे बढ़ाना इसलिए एजुकेशन शब्द का अर्थ हुआ बच्चों के आंतरिक शक्तियों को बाहर की और विकसित करना इसी प्रकार शिक्षा शब्द का संग्रह रूप से अर्थ है बालक के जन्मजात शक्तियों का विकसित होना।

शिक्षा के विभिन्न प्रकार हैं जैसे कि मौलिक शिक्षा, मानविकी, सामाजिक शिक्षा, साहित्यिक शिक्षा, वैज्ञानिक शिक्षा, गणित शिक्षा, कला शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और खेलकूद शिक्षा इत्यादि। ये शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता और व्यापक ज्ञान का विकास करते हैं। यह व्यक्ति के जीवन में एक स्थाई परिवर्तन लाता है जो उनके  आदर्श नागरिक के रूप में समर्पित करता है। व्यक्तित्व और समाज की विकास के क्षमता को बढ़ाता है।

शिक्षा जीवित प्राणियों को अजीवित प्रकृति से अलग करती है क्योंकि यह जीवित प्राणियों में चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा जीव – जन्तुओं और वनस्पतियों में अंतर स्पष्ट करती है क्योंकि शिक्षा यह केवल जन्तुओं में चलने वाली प्रक्रिया है न कि वनस्पतियों में और सभी जन्तुओं के द्वारा अपनी-अपनी प्रकृति के अधीन गुणों के आधार पर व्यवस्था के अंतर्गत कुछ न कुछ सीखा जाता है एवं इसके साथ ही साथ मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के मध्य शिक्षा के स्तर से ही स्पष्टीकरण होता है तथा मनुष्यों के मध्य भी शिक्षा का स्तर ही उनके व्यक्तित्व को स्पष्ट करता हैं।

प्रत्येक मनुष्य जन्म के बाद सर्वप्रथम पहला शब्द मां के गोद में बोलता है उसके बाद अपने घरेलू वातावरण तथा अपने समाज के पर्यावरण जिसके भी संपर्क में आता है उसे कुछ ना कुछ सीखता रहता है इस सीखने व अनुभव का परिणाम यह होता है कि वह धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण से अपने भौतिक घर परिवार समाज और आध्यात्मिक वातावरण से अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करता है यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है।

शिक्षा पर विद्वानों के विचार

समाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों व नीतिकारों ने शिक्षा के सम्बन्ध में अपने विचार दिए हैं। 

शिक्षा के प्रकार।

(1) औपचारिक शिक्षा

(2) निरौपचारिक शिक्षा

(3) अनौपचारिक शिक्षा

(1) औपचारिक शिक्षा

वह शिक्षा जो विद्यालयों, महाद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सिखाई जाती है, औपचारिक शिक्षा कही जाती है। इस शिक्षा का यही उद्देश्य होता है कि पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियाँ, सभी पहले से ही यह योजनाबद्ध होती है और इसकी योजना बड़ी कठोर होती है। इसमें सीखने वालों को विद्यालय, महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय की समय सारणी के अनुसार कार्य करना होता है। इसमें परीक्षा लेने और प्रमाण पत्र प्रदान करने की व्यवस्था होती है। इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह व्यक्ति में ज्ञान और कौशल का विकास करती है और उसे किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के लिए योग्य बनाती है। लेकिन इससे धन, समय व ऊर्जा सभी व्यय करने पड़ते हैं।

(2) निरौपचारिक शिक्षा

वह शिक्षा जो औपचारिक शिक्षा की भाँति विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालयों की सीमा में नहीं बाँधी जाती है। लेकिन इसमें औपचारिक शिक्षा की तरह इसके उद्देश्य व पाठ्यचर्या निश्चित होती है, फर्क केवल उसकी योजना में होता है जो बहुत लचीली होती है। इसका मुख्य उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रचार प्रसार और शिक्षा की व्यवस्था करना होता है। इसकी पाठ्यचर्या सीखने वालों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई की गई है। शिक्षण विधियों व सीखने के स्थानों व समय आदि सीखने वालों की सुविधानानुसार निश्चित होता है। प्रौढ़ शिक्षा, सतत् शिक्षा, खुली शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा, ये सब निरौपचारिक शिक्षा के ही विभिन्न रूप हैं।

इस शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता यह है इनमें उन बच्चों/व्यक्तियों को शिक्षित किया जाता है जो औपचारिक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाए जैसे –

वे लोग जो विद्यालयी शिक्षा नहीं पा सके या पूरी नहीं कर पाए,
वह व्यक्ति जो पढ़ना चाहते हैं,
इस शिक्षा द्वारा व्यक्ति की शिक्षा को निरन्तरता भी प्रदान की जाती है, उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के नए-नए अविष्कारों से परिचित कराया जाता है और तत्कालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

(3) अनौपचारिक शिक्षा

वह शिक्षा जिसकी कोई योजना नहीं बनाई जाती है, जिसके न उद्देश्य निश्चित होते हैं न पाठ्यचर्या और न शिक्षण विधियाँ और जो आकस्मिक रूप से सदैव मनुष्य के जीवन भर चलती रहती है, उसे अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। और इसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। वह अपने सम्पर्क में आए व्यक्तियों व वातावरण से सीखता रहता है। बच्चे की प्रथम शिक्षा अनौपचारिक वातावरण में घर में रहकर ही पूरी होती है। जब वह विद्यालय में औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने आता है तो एक व्यक्तित्त्व के साथ आता है जो कि उसकी अनौपचारिक शिक्षा का प्रतिफल है।

व्यक्ति की भाषा व आचरण को उचित दिशा देने, उसके अनुभवों को व्यवस्थित करने, उसे उसकी रुचि, और योग्यतानुसार किसी भी कार्य विशेष में प्रशिक्षित करने तथा जन शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार के लिए हमें औपचारिक और निरौपचारिक शिक्षा का विधान करना आवश्यक होता है।

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